सोमवार, 17 नवंबर 2014

काली कमाई का सबसे सुरक्षित ठिकाना बैंक लॉकर ?

         भ्रष्टाचार और काला धन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं . दोनों एक-दूजे के लिए ही बने हैं और एक-दूजे के फलने-फूलने के लिए ज़मीन तैयार करते रहते हैं . यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों एकदम सगे मौसेरे भाई हैं. भ्रष्टाचार से अर्जित करोड़ों-अरबों -खरबों की दौलत को छुपाकर रखने के लिए तरह -तरह की जुगत लगाई जाती है . भ्रष्टाचारियों द्वारा इसके लिए अपने नाते-रिश्तेदारों ,नौकर-चाकरों और यहाँ तक कि कुत्ते-बिल्लियों के नाम से भी बेनामी सम्पत्ति खरीदी जाती है . बेईमानी की कालिख लगी दौलत अगर छलकने लगे तो सफेदपोश चोर-डाकू उसे अपने बिस्तर और यहाँ तक कि टायलेट में भी छुपाकर रख देते हैं . .हालांकि देश के सभी राज्यों में हर साल और हर महीने कालिख लगी कमाई करने वाले सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों पर छापेमारी चलती रहती है ,करोड़ों -अरबों की अनुपातहीन सम्पत्ति होने के खुलासे भी मीडिया में आते रहते हैं .
                      आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि हमारे देश के राष्ट्रीयकृत और निजी क्षेत्र के बैंक भी भ्रष्टाचारियों  की   बेहिसाब दौलत को छुपाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गए हैं .जी हाँ !  ये बैंक  जाने-अनजाने इन भ्रष्ट लोगों की मदद कर रहे हैं और उनकी काली कमाई के अघोषित संरक्षक बने हुए हैं  ! वह कैसे ? तो जरा विचार कीजिये ! प्रत्येक बैंक में  ग्राहकों को लॉकर रखने की भी सुविधा मिलती है .हालांकि सभी खातेदार इसका लाभ नहीं लेते ,लेकिन कई इच्छुक खातेदारों को बैंक शाखाएं  निर्धारित शुल्क पर लॉकर आवंटित करती हैं  .उस लॉकर में आप क्या रखने जा रहे हैं , उसकी कोई सूची बैंक वाले नहीं बनाते . उन्हें केवल अपने लॉकर के किराए से ही मतलब रहता है . लॉकर-धारक से उसमे रखे जाने वाले सामानों की जानकारी के लिए कोई फ़ार्म नहीं भरवाया जाता .  .आप सोने-चांदी ,हीरे-जवाहरात से लेकर  बेहिसाब नोटों के बंडल तक उसमे रख सकते हैं . एक मित्र ने मजाक में कहा - अगर आप चाहें तो अपने बैंक लॉकर में दारू की बोतल और अफीम-गांजा -भांग जैसे नशीले पदार्थ भी जमा करवा सकते हैं .
          कहने का मतलब यह  कि बैंक वाले अपनी शाखा में लॉकर की मांग करने वाले किसी भी ग्राहक  को निर्धारित किराए पर लॉकर उपलब्ध करवा कर अपनी ड्यूटी पूरी मान  लेते हैं  . आज ही खबर छपी है कि एक भ्रष्ट अधिकारी के बैंक लॉकर होने की जानकारी मिलने पर जांच दल ने जब उस बैंक में उसे साथ ले जाकर लॉकर खुलवाया तो उसमे पांच लाख रूपए नगद मिले ,जबकि उसमे विभिन्न देशों के बासठ नोटों के अलावा कई विदेशी सिक्के भी उसी लॉकर से बरामद किये गए ..उसके ही एक अन्य बैंक के लॉकर में करोड़ों रूपयों की जमीन खरीदी से संबंधित रजिस्ट्री के दस्तावेज भी पाए गए .जरा सोचिये ! इस व्यक्ति ने  पांच लाख रूपये की नगद राशि को अपने बैंक खाते में जमा क्यों नहीं किया ? उसने इतनी बड़ी रकम को लॉकर में क्यों रखा ? फिर उस लॉकर में विदेशी नोटों और विदेशी सिक्कों को रखने के पीछे  उसका इरादा क्या था ? हमारे जैसे लोगों के लिए तो  पांच लाख रूपये भी बहुत बड़ी रकम होती है .इसलिए मैंने इसे 'इतनी बड़ी रकम' कहा .
          बहरहाल हमारे  देश में बैंकों के लॉकरों में पांच लाख तो क्या , पांच-पांच करोड रूपए रखने वाले भ्रष्टाचारी भी होंगे .कहते हैं कि भारत के काले धन का जितना बड़ा जखीरा विदेशी बैंकों में है ,उससे कहीं ज्यादा काला धन देश में ही छुपा हुआ है और तरह-तरह के काले कारोबार में उसका धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है . बैंक लॉकर भी काले-धन को सुरक्षित रखने का एक सहज-सरल माध्यम   बन गए हैं .ऐसे में अगर देश के भीतर छुपाकर रखे गए काले धन को उजागर करना हो तो सबसे पहले तमाम बैंक-लॉकर धारकों के लिए यह कानूनन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि वे अपने लॉकर में रखे गए सामानों की पूरी जानकारी बैंक-प्रबंधन को दें .ताकि उसका रिकार्ड सरकार को भी मिल सके .अगर लॉकर धारक ऐसा नहीं करते हैं तो उनके लॉकर जब्त कर लिए जाएँ . मुझे लगता है कि ऐसा होने पर  अरबों-खरबों रूपयों का काला धन अपने आप बाहर आने लगेगा और उसका उपयोग देश-हित में किया जा सकेगा .(स्वराज्य करुण )

रविवार, 9 नवंबर 2014

(ग़ज़ल ) पत्थर दिल वालों की महफ़िल ...!

                                      दिल पत्थर का, घर पत्थर के ,ये पत्थर की बस्ती है,
                                      धन-दौलत के दानव  हैं जहां ,मानव की क्या हस्ती है !
                                       लूट सके जो इस दुनिया को खतरनाक इरादों से ,
                                       सिर्फ उसी के मोह-जाल में भोली दुनिया फँसती है !
                                       पंछी -पर्वत ,नदिया-पनघट ,हर कोई है दहशत में ,
                                       हरियाली के हत्यारों की हर-पल धींगा-मस्ती है !
                                       इंसानों का वेश बनाकर घूम रहे कातिल सौदागर ,
                                      बेच रहे जो जीवन महंगा ,मौत भले ही सस्ती है !
                                      पत्थर दिल वालों की महफ़िल में अपनी औकात कहाँ  ,
                                      हमें देखकर जिनकी आँखें नफरत से खूब हँसती हैं !
                                      जाने कब बदलेंगे सपने सचमुच यहाँ हकीकत में,
                                      तारीखों पे तारीख देती अदालत की बेदिल नस्ती है !
                                                                                   -स्वराज्य करुण

सोमवार, 3 नवंबर 2014

क्या सपना ही रह जाएगा अपने मकान का सपना ?

आधुनिक भारतीय समाज में यह आम धारणा है कि इंसान को अपनी कमाई बैंकों में जमा करने के बजाय ज़मीन में निवेश  करना चाहिए . कई लोग ज़मीन खरीदने में पूँजी लगाने को बैंकों में  'फिक्स्ड  डिपौजिट' करने जैसा मानते हैं . यह भी आम धारणा है कि सोना खरीदने से ज्यादा फायदा ज़मीन खरीदी में है . समाज में प्रचलित इन धारणाओं में काफी सच्चाई है, जो साफ़ नज़र आती है .
       अपने शहर में किसी ने आज से पचीस साल पहले अगर दो हजार वर्ग फीट जमीन कहीं बीस रूपए प्रति वर्ग फीट के भाव से चालीस हजार रूपए में खरीदी थी तो आज उसकी कीमत चालीस लाख रूपए हो गयी है . पीछे  मुड़कर बहुत दूर तक देखने की जरूरत नहीं है .याद कीजिये तो पाएंगे कि  छोटे और मंझोले शहरों में आज से सिर्फ दस  साल पहले एक हजार  वर्ग फीट वाले जिस मकान की कीमत छह -सात लाख रूपए थी आज वह बढकर पैंतीस-चालीस लाख रूपए की हो गयी है . कई कॉलोनियां ऐसी बन रही हैं ,जहां एक करोड ,दो करोड और पांच-पांच करोड के भी मकान बिक रहे हैं .उन्हें खरीदने वाले कौन लोग हैं और उनकी आमदनी का क्या जरिया है , इसका अगर ईमानदारी से पता लगाया जाए तो काले धन के धंधे वालों के कई चौंकाने वाले रहस्य उजागर होंगे .प्रापर्टी का रेट शायद ऐसे ही लोगों के कारण तेजी से आसमान छूने लगा है . प्रापर्टी डीलिंग का काम करने वाले कुछ बिचौलियों की भी इसमें काफी संदेहास्पद भूमिका हो सकती है .  कॉलोनियां बनाने वालों के लिए यह कानूनी रूप से अनिवार्य है कि वे उनमे दस-पन्दरह प्रतिशत मकान आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए भी बनवाएं ,लेकिन अधिकाँश निजी बिल्डर इस क़ानून का पालन नहीं करते और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता .
           ज़मीन और मकानों की  कीमतें  इस तरह बेतहाशा बढने के पीछे क्या गणित है ,यह कम से कम मुझ जैसे सामान्य इंसान की समझ से बाहर है ,लेकिन इस रहस्यमय मूल्य वृद्धि की वजह से  गरीबों और सामान्य आर्थिक स्थिति वालों पर जो संकट मंडराने लगा है , वह देश और समाज दोनों के भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है. जब किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति या उसके परिवार को रहने के लिए एक अदद मकान नहीं मिलेगा तो उसके दिल में सामाजिक व्यवस्था के प्रति स्वाभाविक रूप से आक्रोश पैदा होगा .अगर यह आक्रोश सामूहिक रूप से प्रकट होने लगे तो फिर क्या होगा ? सोच कर ही डर लगता है .
        यह एक ऐसी समस्या है जिस पर सरकार और समाज दोनों को मिलकर विचार करना और कोई रास्ता निकालना चाहिए . रोटी और कपडे का जुगाड तो इंसान किसी तरह कर लेता है ,लेकिन अपने परिवार के लिए मकान खरीदने या बनवाने में उसे पसीना आ जाता है.  खुद का मकान होना सौभाग्य की बात होती है ,लेकिन यह सौभाग्य हर किसी का नहीं होता . खास तौर पर शहरों में यह एक गंभीर समस्या बनती जा रही है . जैसे-जैसे रोजी-रोटी के लिए , सरकारी और प्राइवेट नौकरियों के लिए ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर पलायन हो रहा है , यह समस्या और भी विकराल रूप धारण कर रही है .जहां आज से कुछ साल पहले शहरों में आवासीय भूमि की कीमत पच्चीस-तीस या पचास  रूपए प्रति वर्ग फीट के आस-पास हुआ करती थी ,आज वहाँ  उसका  मूल्य सैकड़ों और हजारों रूपए वर्ग फीट हो गया है . ऐसे में कोई निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार स्वयं के घर का सपना कैसे साकार कर पाएगा ?
        सरकारी हाऊसिंग  एजेंसियां शहरों में लोगों को सस्ते मकान देने का दावा करती हैं ,लेकिन उनकी कीमतें भी इतनी ज्यादा होती हैं कि  उनका मकान  खरीद पाना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता .इधर निजी क्षेत्र के बिल्डरों की भी  मौज ही मौज है . अगर किसी मकान की प्रति वर्ग फीट निर्माण लागत अधिकतम एक हजार  रूपए प्रति वर्ग फीट हो तो सीधी-सी बात है कि  पांच सौ वर्ग फीट का मकान पांच  लाख रूपए में बन सकता है .लेकिन बिल्डर लोग इसे पन्द्रह -बीस लाख रूपए में बेचते हैं ,यानी निर्माण लागत का तिगुना -चौगुना दाम वसूल करते हैं . ज़ाहिर है कि गरीब या कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवार के लिए खुद के मकान का सपना आसानी से साकार नहीं हो सकता . ऐसे में सरकार को अलग-अलग आकार के मकानों की  प्रति वर्ग फीट  एक निश्चित निर्माण लागत तय कर देनी  चाहिए ,जो  सरकारी तथा निजी दोनों तरह के बिल्डरों के लिए अनिवार्य हो . शहरों में आवासीय ज़मीन की बेलगाम बढती कीमतों पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है . अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश के शहरों में अधिकाँश लोगों के लिए अपने मकान  का सपना सिर्फ सपना बनकर रह जाएगा .(स्वराज्य करुण )

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

देश का रूपया सीधे विदेशी बैंकों में जमा करने पर प्रतिबंध ज़रूरी !

       अपने देश में कई राष्ट्रीयकृत बैंक हैं ,फिर भी कुछ लोग अपनी कथित धन-राशि   विदेशी बैंकों में ही क्यों जमा करते हैं ?   इससे तो उनकी बदनीयती साफ़ झलकती है . वे जिसे अपना धन समझ रहे हैं , वह तो वास्तव में इस देश की माटी से हासिल पूँजी है ,    जिसे उनके द्वारा टैक्स चोरी के लिए देश के बाहर के बैंकों में जमा किया जाता है .अगर यह दौलत  साफ़-सुथरी होती और उनके दिल भी पाक-साफ़ होते ,तो  ऐसे लोग यह रूपया अपने ही देश के सरकारी बैंकों में जमा करते . उन बैंकों के माध्यम से भले ही उन्हें विदेशों में पैसों की जरूरत होने पर राशि का हस्तांतरण हो जाता .यह माना जा सकता है कि कुछ लोगों को अपने बेटे-बेटियों की विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए ,या विदेश में स्वयं के  अथवा अपने किसी नाते-रिश्तेदार के इलाज के लिए भी राशि की ज़रूरत हो सकती है , दूसरे देशों में  उद्योग-व्यापार में निवेश  अथवा समाज-सेवा के कार्यों में दान देने के लिए भी पूँजी की जरूरत होती है .अगर ऐसे प्रयोजनों के लिए कोई अपना रूपया विदेश भेजना चाहे तो उसे अपने देश के किसी सरकारी बैंक के माध्यम से भेजना चाहिए ,ताकि उसका पूरा हिसाब देश की सरकार के पास रहे ,लेकिन यहाँ तो पता नहीं ,किस जरिये से देश की दौलत विदेशी बैंकों में कैद हो रही है .कुछ लोग  अपने ही देश की लक्ष्मी का अपहरण कर रहे हैं . वह धन विदेशों में किस काम में लगाया जा रहा है ,कौन देखने वाला है ?    हो सकता है इस दौलत का इस्तेमाल वे अपने ही देश के खिलाफ साजिश रचने में कर रहे हों  ! ऐसे लोगों के नाम बेनकाब होने ही चाहिए . .पारदर्शिता के इस युग में इन सफेदपोश डाकुओं के नाम गोपनीय रखना किसी भी मायने में उचित नहीं है . .ऐसे बेईमानों का मुँह काला करके सड़कों पर उनका जुलूस निकाला जाना चाहिए और चौक-चौराहों पर जूतों की मालाओं से ' नागरिक अभिनन्दन ' भी होना चाहिए .देश का धन विदेशी बैंकों में सीधे जमा करने की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए . भारत में विदेशी बैंकों की शाखाएं हैं तो केन्द्र सरकार उन्हें  साफ़ -साफ़ यह निर्देश जारी  करे  वे किसी भी भारतीय नागरिक अथवा अप्रवासी भारतीय का रूपया भारत सरकार के अनापत्ति-प्रमाण पत्र के बिना  अपने बैंक में जमा नहीं  करें.! .देश में संचालित विदेशी बैंकों का दिन-प्रतिदिन  पूरा हिसाब भारतीय रिजर्व बैंक को भी अपने पास अनिवार्य रूप से रखना  चाहिए . (स्वराज्य करुण )

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

घातक बीमारियों की दवाइयां टैक्स-फ्री होनी चाहिए !

ह्रदय रोग ,कैंसर और मधुमेह जैसी घातक और खर्चीली बीमारियों में लगने वाली दवाइयों को पूरे देश में टैक्स -फ्री कर देना चाहिए . या फिर सरकारी-गैर सरकारी दोनों तरह के अस्पतालों में इनके मुफ्त इलाज की अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिए .बीमारी से ज्यादा तो इनके इलाज का खर्चा मरीज के प्राण निकालने को तैयार रहता है. गरीब ,निम्न मध्यम और मध्यम वर्गीय परिवारों में दुर्भाग्य से अगर किसी को ऐसी कोई बीमारी हो जाए  तो उस परिवार की आर्थिक हालत एक न एक दिन दयनीय हो जाती है.

शनिवार, 14 जून 2014

(ग़ज़ल ) मुजरिम के सौ गुनाह माफ !




                                     
                                       सब कुछ तो है बहुत   साफ़ आज-कल ,
                                       अब   कौन किसे दे रहा इन्साफ आज-कल  !
                             
                                 
                                       उजड़ा है घर किसी का  किसी के गुनाह से,
                                       मुज़रिम के सौ गुनाह भी हैं माफ आज कल  !
    
                                   
                                        कातिलों के शहर में नज़र आए कहाँ सुबूत ,
                                        ओढ़ कर  मस्त सो रहे लिहाफ आज-कल !

                                         
                                       खरबों में बनी इमारत है न्याय का मंदिर ,
                                       होता है जहां रूपयों का ही जाप आज-कल !

                                    
                                        पुण्य की गठरी तो उधर कोने में पड़ी  है ,
                                        आँगन में उनके हँस रहा है पाप आज-कल !
                                        
                                    
                                         रग-रग में समाया  है  रिश्वत का ज़हर इतना ,
                                         डरने लगे हैं उनसे   कई सांप आज-कल !
                                      
                                    
                                          बेरहमी से ले रहे  हैं गरीबों के दिल की हाय ,
                                          बेअसर है अमीरों पर अभिशाप आज-कल !
                                                                                 -  स्वराज्य करुण