दिल पत्थर का, घर पत्थर के ,ये पत्थर की बस्ती है,
धन-दौलत के दानव हैं जहां ,मानव की क्या हस्ती है !
लूट सके जो इस दुनिया को खतरनाक इरादों से ,
सिर्फ उसी के मोह-जाल में भोली दुनिया फँसती है !
पंछी -पर्वत ,नदिया-पनघट ,हर कोई है दहशत में ,
हरियाली के हत्यारों की हर-पल धींगा-मस्ती है !
इंसानों का वेश बनाकर घूम रहे कातिल सौदागर ,
बेच रहे जो जीवन महंगा ,मौत भले ही सस्ती है !
पत्थर दिल वालों की महफ़िल में अपनी औकात कहाँ ,
हमें देखकर जिनकी आँखें नफरत से खूब हँसती हैं !
जाने कब बदलेंगे सपने सचमुच यहाँ हकीकत में,
तारीखों पे तारीख देती अदालत की बेदिल नस्ती है !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह.बहुत खूब
जवाब देंहटाएंयथार्थ का बाना पहने सटीक भाव।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
बेहतरीन रचना
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